सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

रो पड़ी डा. राजेंद्र प्रसाद की आत्मा .......

जीरादेई, बिहार के सीवान जिले का एक छोटा सा गाँव. ये एक ऐसा गाँव है जिसने देश को प्रथम राष्ट्रपति दिया. शायद यह गाँव उसी दिन इतिहास के पन्नों में चला गया. डा. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने और उसी दिन से ये बिहार के एक पवित्र गाँव में इसकी गिनती शुरू हो गयी. लोगों का मानना था की कुछ तो बात है यहाँ की मिट्टी में की ऐसी विलक्षण प्रतिभा का जन्म यहाँ हुआ है. राजेंद्र बाबू ने जीरादेई का नाम पूरे भारतवर्ष में ऊँचा किया.

पर कुछ दिनों पहले जीरादेई एक बार फिर लोगों के सामने आया. यह गाँव एक बार फिर से लोगों के आकर्षण का केंद्र बना, पर मैं समझ नहीं पाया कि यह कौन सी प्रतिभा थी. असल में पिछले दिनों बिहार कि राजधानी पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने "महादलित रैली" का आयोजन करवाया था. इसी सिलसिले में भाग लेने जीरादेई से कुछ लोग आये हुए थे जो वही के विधायक "श्याम बहादुर सिंह" के सरकारी आवास पर ठहरे हुए थे और पवित्र ग्राम "जीरादेई" के विधायक ने अपने लोगों के मनोरंजन के लिए "बार बालाओं" के नाच का भी कार्यक्रम रखा था. चलिए यहाँ तक तो किसी को शायद कोई आपत्ति नहीं होगी. लेकिन जब आधी रात के बाद विधायक जी पर शराब का नशा उनके सर चढ़ के बोलने लगा तो अपनी मर्यादा भूल कर आ गए वो भी "बार बालाओं" के साथ मैंदान में. वो भी लगे उनके साथ ठुमके लगाने. उनके उस अशलील ठुमकों को देख कर मुझे अपनी आँखों पर यकीं नहीं हो रहा था कि ये जीरादेई जैसे पवित्र भूमी का प्रतिनिधित्व करते हैं और प्रेस के सामने विधायक जी कह रहे हैं कि "बुरा न मानो होली है" मैंने सोचा की शराब के नशे के साथ अगर सत्ता का भी नशा किसी के ऊपर चढ़ जाये तो इसका अंजाम यही होता है. सत्ता का नशा तो अच्छे अच्छों को बहका देता है.

अगर डा. राजेंद्र प्रसाद की आत्मा यह सब देख रही होगी तो वो भी फूट फूट कर रो रही होगी और सोच रही होगी कि "क्या इसी लोकतंत्र के लिए हम अंग्रेजों से लड़े थे." जीरादेई तो एक छोटा सा उदाहरण है आप सबों के सामने, लोकतंत्र का मज़ाक तो देश के हर हिस्से में अलग अलग तरीके से हमारे ये नेता उड़ा रहे हैं. क्या हम यूँ ही ये सब देखते रहेंगे? जितने भी नियम क़ानून बनते हैं वो हम आम जनता के लिए होता है. पर इनके लिए ये कुछ नहीं होता. अगर कोई सरकारी पदाधिकारी ये दुस्साहस करता तो अब तक उसे उसके पद से निष्कासित कर दिया गया होता पर इनको कौन कहेगा?

आप ही सोचिये किसी भी ऑफिस को चपरासी भी चाहिए तो कम से कम दसवी पास की योग्यता रखी जाती है. लेकिन जो आपका देश चला रहा है, आपके लिए नियम क़ानून निर्धारित कर रहा है, उस पद पर जाने की क्या योग्यता है, बस अंगूठा छाप? कितनी निंदनीय व्यवस्था है, मेरी समझ से अब वक्त आ गया है की इस पर बहस छिड़ना चाहिए, लोगों को इसके बारे में सोचना चाहिए. एक चीज़ मैं यहाँ और बता देना चाहता हूँ कि अगर इस इंतज़ार में मत रहिएगा कि ये नेता इस बारे में कुछ सोचेंगे तो ये तो कभी नहीं होगा, क्यूंकि इससे इनकी कुर्सी हिल जाएगी. इसलिए हमें आगे आना होगा. तभी इस देश का दुर्भाग्य बदलेगा.

2 टिप्‍पणियां:

  1. You are correct bro it’s a shameless act done by some politicians. Last few months ago we have seen such incidents happening regularly but nobody is worried about that just they abuse others and start working on their daily routine next day. We should bring this out to people around us at least, great work buddy you have started doing that.

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  2. thanx parth. thats y i said to other ppl that come & initiate the things. bcoz all politicians r selfish & thay will not think about u.

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