आज पता नहीं क्यूँ मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है. बचपन में मेरे पिता जी हमेशा मुझसे कहा करते थे कि "बेटा कुछ भी बोलने के पहले पांच बार सोच लिया करो, क्यूंकि एकबार बात आपके मुह से निकल जाती है तो फिर वापस नहीं आती और इस चीज़ का भी ध्यान रखना चाहिए कि मैं जो कुछ भी कहने जा रहा हूँ कही इससे किसी का दिल ना दुखे"
जहाँ तक मैं सोचता हूँ ये संस्कार और शिक्षा हर किसी को अपने घर और परिवार में किसी न किसी के द्वारा मिल ही जाती है. पर जब मैंने कल बाल ठाकरे का राहुल गाँधी के खिलाफ दिया गया कथन सुना तो मैं बड़ा आश्चर्यचकित रह गया. मेरे दिमाग में बस एक ही बात आ रही थी, कि क्या इनके परिवार में कोई ऐसा बुज़ुर्ग नहीं था जिनसे इन्हें अपर्युक्त संस्कार मिल सकता था जो हमें बचपन में मिला है. श्री बाला साहेब ठाकरे जी का कहना था कि " राहुल गाँधी का दिमागी संतुलन ख़राब हो गया है क्यूंकि उनकी शादी कि उम्र निकल चुकी है और लोगों की सही उम्र में शादी नहीं होती है तो ऐसी ही बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं" इस तरह का वक्तव्य इतने बुज़ुर्ग नेता के लिए शोभा नहीं देता. वैसे जब मैंने ठाकरे साहेब का ये वक्तव्य सुना तो मुझे लगा कि उन्हें उनकी बात ही याद दिलानी चाहिए कि छः साल तक केंद्र सरकार के मज़े चखने के लिए उन्होंने अटल जी का दामन पकड़ा था जो खुद ही अविवाहित हैं. तो क्या मैं इसका मतलब यह सोचूं कि अटल जी का दिमागी संतुलन बिगड़ गया था जिस कारण ठाकरे साहेब कि पार्टी को केंद्र सरकार में शामिल किया. जहाँ तक मुझे स्मरण होता है कि अपने गत वर्ष के महाराष्ट्र चुनाव में जिस नरेन्द्र मोदी को स्टार प्रचारक बना कर ले आये थे वो भी अविवाहित हैं और तो और बाल ठाकरे ने ऐसा कह कर देश के सर्वोच्च पद के ऊपर भी एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है क्यूंकि हमारी वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटिल के पहले जो हमारे देश के राष्ट्रपति थे श्री अबुल कलाम, वो भी तो अविवाहित ही थे.
मुझे समझ नहीं आता है कि क्यूँ ये लोग अपनी ओछी राजनीति के चक्कर में देश कि गरिमा दाँव पर लगा देते हैं. शाहरुख़ खान ने अगर IPL में पाकिस्तानी क्रिकेटर के समर्थन में थोडा सा बोल दिया तो इतना बवाल मचा रहे हैं. लेकिन जब 2004 में पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियाँदाद, जो अब दाऊद इब्राहीम का समधी भी है, इनके घर "मातोश्री" में मेहमान नवाजी कर रहे थे तब इनकी सेखी कहाँ गयी थी. उस समय तो सारा ठाकरे कुनबा उनके साथ एक फोटो खिचवाने और मेजबानी करने में व्यस्त थे.
मैं यहाँ श्री राहुल गाँधी जी को दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ, क्यूंकि उन्होंने ठाकरे साहेब के इस असंयमित भाषा के जवाब में भी संयम नहीं खोया और बड़े ही अच्छे ढंग से उनका जवाब दे रहे हैं, जबकि ठाकरे साहेब ने न सिर्फ राहुल गाँधी पर व्यंग किया है बल्कि उनके परिवार पर भी व्यंग के बाण छोड़े हैं, उन्होंने तो सोनिया गाँधी को इटालियन मम्मी तक कह दिया. अब मुझे फिर से बचपन में सुनी हुई एक बात याद आ रही है कि " एक उम्र के बाद बच्चे और बूढों कि मानसिकता बिलकुल सामान हो जाती है, उनकी हर एक हरकत बच्चों जैसी हो जाती है" तो शाएद ठाकरे साहेब एक उम्र के पडाव को पार कर चुके हैं जहाँ से उनकी बच्चों वाली मानसिकता शुरू हो चुकी है. वैसे भी किसी सरकारी संस्थानों में ६० वर्ष के बाद व्यक्ति को अवकाश दे दिया जाता है, तो इनकी उम्र तो इससे बहुत ज्यादा भी हो चुकी है अतः इन्हें भी पूर्ण अवकाश पर चले जाना चाहिए.
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