आज मुझे राहुल गाँधी के मुंबई दौरे के दौरान महाराष्ट्र सरकार द्वारा की गयी मुंबई की चाक चौबंद व्यवस्था को देख कर बहुत ख़ुशी हुई. ख़ुशी इस बात की नहीं हुई कि राहुल गाँधी कि सुरक्षा में सरकार सफल रही और उनकी यात्रा सफल हो गयी. बल्कि ख़ुशी इस बात कि हुई है कि जो शिव सेना और मनसे बेलगाम घोड़ों कि तरह मुंबई में आतंक मचाते रहते हैं, उनको काबू कर लिया. असल में कल शिव सेना का एलान था कि वो राहुल गाँधी को काला झंडा दिखा कर विरोद्ध प्रदर्शन करेंगे. लेकिन राहुल कल मुंबई के सड़कों पर इस तरह से फिरते रहे जैसे कोई खुल्ला शेर घूम रहा हो और किसी कि मजाल नहीं कि आस पास कोई फटक जाये. राहुल गाँधी तो मुंबई कि धड़कन कहलाने वाली लोकल ट्रेन में भी आम लोगों के बीच पहुँच गए. मैं किसी न्यूज़ चैनल पर देख भी रहा था कि किस तरह वो आम लोगों से बढ़-चढ के हाथ मिला रहे थे. ये अच्छा लगा कि हमारा नेता आम जनता कि बीच है. इसका पूरा श्रेय मैं वहां कि सरकार को देना चाहता हूँ. क्यूंकि उन्होंने दिखा दिया कि प्रशासन क्या चीज़ होती है, वो अगर चाह ले तो एक पत्ता भी न हिले.
पर फिर मेरे दिमाग में एक बात आयी कि, क्या गत वर्ष जब उत्तर भारतीओं पर जो हमले हो रहे थे उस वक़्त सरकार इसे रोकना नहीं चाह रही थी? उस वक़्त भी तो यहाँ कांग्रेस कि ही सरकार थी. राहुल गाँधी के मुबई दौरे के एक दिन पहले शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए करीब 300 से ऊपर शिव सैनिक गिरफ्तार किये गए. पर कोई मुझे ज़रा ये बता दे कि जब यही शिव सैनिक उत्तर भारतियों के ऊपर सड़क पर, ट्रेन में, परीक्षा केन्द्रों पर बेतहाशा हमले कर रहे थे उस वक़्त यही सरकार या इन्ही कि पुलिस 30 शिव सैनिकों को भी गिरफ्तार नहीं कर पाई थी और आज 300 से ऊपर गिरफ्तारियां हो गयी? हद तो तब हो गयी थी जब मैंने देखा कि मुंबई पुलिस को उस वक़्त जहाँ उत्तर भारतियों कि सुरक्षा में लगाना चाहिए था वहां ये उन्हें ट्रेनों में बिठा कर वापस भेजने के काम में लगा दिए गए थे. मतलब ये हुआ कि "गरीबी मत मिटाओ, गरीबों को मिटा दो." पर कल राहुल गाँधी के मुबई दौरे के दौरान सारी पुलिस फोर्स एक पैर पर नाच रही थी. यहाँ तक कि मुंबई पुलिस कमिशनर खुद इस तरह से भाग रहे थे जैसे कोई एक सिपाही हो और जब एक आम आदमी अपनी गुहार ले कर इनके पास जाता है तो इनसे मिलने में उसे महीनो लग जाते हैं. यहाँ तो यही निष्कर्ष निकलता है कि राहुल गाँधी इस सरकार के सर्वेसर्वा हैं तो उनके लिए सरकार सबकुछ कर सकती है और आम जनता जो ऐसे ही लोगों को ख़ास बना कर भेजती है, वो मरती रहे इसका दर्द कोई सुनने वाला नहीं है?
क्या इसका मतलब मैं यही समझूं कि "लोकतंत्र में सुरक्षा, सविंधान के अनुसार नहीं मिलती है बल्कि सुरक्षा हैसियत देख कर दी जाती है" शायद यही आधुनिक युग के लोकतंत्र कि परिभाषा है." अगर आज यही लोकतंत्र कि परिभाषा बन गयी है तो हमें आगे आना होगा. इस परिभाषा को बदल कर एक नए भारत का निर्माण करना होगा और आशा करता हूँ कि आप भी मेरे इस विचार से सहमत होंगे.
i m really impressed. the way u write or think. we hv to take a step. as u said in ur last comment that politics is not bad only politicians r bed & i m fully agree. keep it up boss
जवाब देंहटाएंyou are right i agree with u , par kuch to karna padega warna bharat ke sath bharatwasiyo ka bhi bura haal ho jayega,huem IPL,My Name is khan ke alawa bhi kuch sochna chaiye, i dont know when people will wake up and realize their responsibilities
जवाब देंहटाएंtumne bilkul thik likha hai .
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