मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

कलयुग में भगवन शंकर

एक दिन सुबह की बात है. शायद नवरात्र का समय था, छुट्टी मनाने के मिजाज से मैं देर तक सोया हुआ था की अचानक मेरे कानोंमें कुछ कोतुहल सुनाई दिया जिससे मेरी नींद खुल गयी. मैं बाहर अपने दरवाजे पर आ कर देखता हूँ की स्वयं भगवन शंकर अपने अर्धनारीश्वर रूप में पधारे हुए हैं. मुझे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था. मैं खुद को झकझोरते हुए जगाने की कोशिश कर रहा था की कही मैं स्वप्नलोक में तो नहीं हूँ. एक बार फिर आँख मलते हुए देखा तो पाया की ये अर्धनारीश्वर भगवान् शंकर नहीं उनके रूप में कोई और ही है जिसे कलयुगी भाषा में हिजड़ा या किन्नर कहते हैं. वो मुझे दिल से दुआएं दे रहा था. यह सब देख कर मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था और मैं उसके पास जाने में हिचक रहा था. मैंने उसे दस रुपये के दो नोट दे कर चलता किया. वो मुझे वर्तमान और भविष्य के लिए ढेरों दुआएं देता हुआ चला गया. पर उसके जाने के बाद मैं ये सोचने लगा की इसी इंसान को जब मैंने अपनी आधे जगे और आधे सोये हुए अवस्था में भगवान् शंकर का अर्धनारीश्वर रूप समझ रहा था तो मेरे मन में इसके प्रति कितनी श्रद्धा जगी थी. शायद अगर सचमुच भगवान् शंकर इस रूप में उपस्थित हो जाते तो मेरे से ज्यादा भाग्यवान इस धरती पर कोई नहीं होता, पर जैसे ही मुझे लगा की ये हिजड़ा है तो अजीब सा घृणा का भाव मेरे मन में आ गया, क्या ये सही था?
कभी कभी मैं सोचता हूँ की लोग पुरुषों की तुलना भगवान् राम और विष्णु से करते हैं और स्त्रियों की तुलना माँ सीता और लक्ष्मी से. मैंने कई लोगों को कहते भी सुना है की "देखो दोनों की क्या जोड़ी है, लगता है जैसे राम और सीता हैं" पर आज तक किसी हिजड़े तुलना भगवन शंकर के अर्धनारीश्वर रूप से नहीं किया है. आज हमारे बिच ये सिर्फ मजाक का पात्र हैं. ज़रा सोचिये हर खुशियों में ये हमारे यहाँ आ कर लाखों दुआएं दे कर चले जाते हैं, हमारी हर ख़ुशी में शरीक होते हैं पर हमारा समाज इनके साथ कैसा बर्ताव करता है. क्या कभी हमने सोचा है की इन्हें भी उसी भगवान् ने बनाया है जिसने हमें बनाया है. तो हम कौन होते हैं इनका मजाक उड़ाने वाले? आगे से आप भी ध्यान रखना की अगर आप इनका मजाक उड़ा रहे हैं तो इसका मतलब है की आप भगवान् शंकर के अर्धनारीश्वर के रूप पर हस रहे हैं.

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