मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

सहनशीलता

सह लिया था वह दुर्दिन हमने
जब छिना था तूने ताशकंद में भारत के लाल को
विस्मित हो गया हूँ यह जान कर
करके विस्फोट कर दिया अशांत भारत के भाल को

जान कर आज तक अनजान रहा
यह सोच कर की मिट न जाये देश से मानवता
कहलाते हो पाक पर तेरे इरादे कितने हैं नापाक
मिट ना पाई अबतक तेरे मन की दानवता

खंड खंड करके कश्मीर तो जलाया तूने
जला तो दिया था पंजाब भी
महाराष्ट्र में भी दिखाई अपने लपट तूने
देखो भष्म करना चाहा बंगाल भी

ऐ हिन्द वासियो आगे बढ़ो अपनी हूंकार से
बाधा लो भूगोल अपने हिन्दुस्तान का
बेशर्म आतंक का जो बन चूका है आज पर्याय
मिटा दो नाम उस कलंकी पकिस्तान का

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