पद्मावत , मैंने तय किया था कि इस विषय पर मैं न तो कुछ बोलूंगा और न कुछ लिखूंगा. क्यूंकि एक तो मैंने फिल्म देखी नहीं है और न ही मुझे इसका इतिहास पता है. लेकिन कल की गुरुग्राम की घटना ने मुझे मजबूर कर दिया. इस फिल्म के लिए चारों तरफ विरोध चल रहा था प्रदर्शन हो रहे थे. खैर विरोध प्रदर्शन तो हर किसी का संवैधानिक अधिकार है. लेकिन कल जो गुरुग्राम में हुआ ये कौन सा तरीका था विरोध प्रदर्शन का....? स्कूल बस में मासूम बच्चे बैठे थे. जिन्हे शायद 'पद्मावती और करणी सेना' का नाम भी नहीं पता होगा, लेकिन इसके नाम पर जो उन्होंने भय और आतंक भरे क्षण गुज़ारे हैं उनका कौन ज़िम्मेदार है? ज़रा दो मिनट सोच के देखिये, हँसते खेलते हुए ये बच्चे स्कूल से छुट्टी होने की ख़ुशी में घर की ओर जा रहे हैं और अचानक पत्थरों की बारिश शुरू हो जाती है और बस के शीशे टूटने लगते हैं. वो बच्चे जिनके चेहरों पर घर पहुंचने की ख़ुशी थी, अब घर पहुँच भी पाएंगे की नहीं ये डर हो गया. अचानक बस के अंदर रोने-चीखने की आवाज़ शुरू हो जाती है. लेकिन प्रदर्शनकारी को ज़रा भी दया नहीं आती है और वो लगातार पत्थरबाजी कर रहा है. अब यहाँ आप ये भी सोच के देखिये कि उसी बस में आपका बच्चा भी बैठा हुआ है.
इस लिंक में आप देख सकते हैं की बच्चों की कैसी हालत थी उस वक़्त
आज पद्मावत इतना बड़ा मुद्दा बन गया है कि कई प्रदेश की सरकारें इसके विरोध
में आ गयी हैं. यहाँ तक की सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार इसके प्रदर्शन पर कोई रोक नहीं लग सकती. फिर भी प्रदेश की सरकार इस पर कानूनी राय लेने की बात कर रहे हैं कि इस पर कैसे रोक लगे. जिस पद्मावती के अपमान के कारण ये सारा प्रदर्शन चल रहा है, पता नहीं कितने संगठनों ने इसे समाज की इज़्ज़त का मुद्दा बना लिया है. लेकिन सब ये भूल गए कि जिस गुरुग्राम में प्रदर्शन के नाम पर बच्चों को डराया गया, उसी प्रदेश में पिछले 10 दिन में 10 पद्मावती के साथ बलात आचरण किया गया और उसमे कुछ नन्ही पद्मावती भी थी. अब पूछता हूँ कहाँ हैं वो समाज के ठेकदार, जिनकी इज़्ज़त पद्मावत के रिलीज़ होने से जा रही है, अगर इतनी ही इतिहास की चिंता थी तो पिछले 10 दिनों में इसके लिए क्यों नहीं विरोध प्रदर्शन हुए. क्या ये सब जो समाज में चल रहा है उससे उनके समाज की इज़्ज़त नहीं जा रही. क्या यही हमारा इतिहास रहा है. सेना चलाने वाले पद्मावत के निर्देशक, कलाकार के सर-नाक काटने पर लाखों इनाम की घोषणा कर रहे हैं. अगर वो खुद को समाज का सच्चा संगरक्षक मानते हैं तो कभी उन्होंने समाज के इन अपराधियों के लिए ऐसी घोषणा क्यों नहीं की.
ये सारा नाटक सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए चल रही है. साथ ही सरकारें इन जैसे लोगों को भरपूर समर्थन भी कर रही है. सामान्यतः एक आम आदमी अगर सर काटने की बात भी कर ले तो अगले घंटे वो खुद को जेल के अंदर पाएगा, लेकिन ये जनाब कई जगहों पर पार्टी विशेष का चुनाव प्रचार करते नज़र आते हैं वो भी भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था के साथ. इसलिए फिल्मों को छोड़ अगर समाज कि आज की पद्मावती की रक्षा के लिए ठोस कदम उठायें तो वो ज्यादा बेहतर होगा.


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