बुधवार, 13 दिसंबर 2017

कैसी ये चीत्कार है...

गोरखपुर हादसा 

कैसी चीत्कार है, ये कैसा हाहाकार है
मृत हुए मासूम, निष्ठुर ये सरकार है.
मां की ये गोद है, गोद मे अबोध है
मृत पड़ा है ये, माँ को नही ये बोध है.
लाशों का व्यापार है, कौन गुनाहगार है 
कैसी चीत्कार है, ये कैसा हाहाकार है.

गोद ये पिता की आज अर्थी बन गयी
माँ के कलेजे को ये टुकड़े टुकड़े कर गयी.
सीले हुए ये लब हैं, हाथों में शव है
पंक्तियों में सब है, संस्कार कब है.
मृत हुए मासूम, निष्क्रिय सरकार है
कैसी चीत्कार है ये कैसा हाहाकार है.


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