पिछले दो-तीन दिनों से अखबारों और न्यूज़ चैनल पर बाल ठाकरे एण्ड कंपनी को बिहारियों के खिलाफ ज़हर उगलते हुए देख रहा हूँ. कल तो हद ही हो गयी, एक सिनेमा हॉल में भोजपुरी फिल्म चल रही थी और वहाँ राज ठाकरे के गुंडों ने हमला बोल दिया, जो पकड़ में आया उसे बुरी तरह पीट दिया. यह सब देख कर पता नहीं क्यूँ मुझे आज राहुल गाँधी याद आ गए और साथ ही उनका फ़रवरी 2010 का बिहार दौरा याद आ रहा है. जी हाँ, मुझे उसी राहुल गाँधी की याद आई है जो बिहार चुनाव के ठीक पहले पटना आये थे और सिंह गर्ज़ना करते हुए कहा था कि “बिहारियों को महाराष्ट्र जाने से कोई नहीं रोक सकता. अगर कोई इसकी हिम्मत भी करता है तो उसे करारा जवाब दिया जाएगा.” पर कहाँ गया वो कुरते की आस्तीन चढा कर शानदार भाषण देने वाला व्यक्ति जब फिर से बिहारियों पर हमले हुए. आज मराठियों के खिलाफ रोष प्रकट करने वाला राहुल गाँधी ठीक उसी तरह गायब है जैसे गधे के सर से सींग गायब होता है, आखिर ये कैसी लुका छिपी है?
मुझे याद आता है जब राहुल से नाराज़ हो कर शिव सेना ने राहुल गाँधी के मुंबई घुसने पर पाबंदी लगा दी थी. पर राहुल गाँधी मुंबई आये लेकिन उसके पीछे जो पुलिस व्यवस्था की गयी थी वो देखने लायक थी. जी हाँ लग रहा था जैसे परिंदा भी पर नहीं मार सकता. राहुल गांधी के मुंबई पहुचने के ठीक पहले करीब 300 से ज्यादा शिव सैनिक गिरफ्तार किये गए थे. जबकि मुझे याद नहीं है कि जब भी बिहारियों या उत्तर भारतियों पर हमले हुए हैं उस वक्त 30 शिव सैनिक भी गिरफ्तार हुए हों. हाँ पुलिस वालों की ड्यूटी मुंबई के हर स्टेशनों पर ज़रूर लगा दी जाती है जो बिहारियों को ज़बरदस्ती ट्रेन में बिठा कर वापस भेजने का काम करती है. यहाँ सरकार का मतलब साफ़ है कि वो भी दबे जुबां से इन दंगाइयों की मदद कर रही है. अभी तक जितने भी हमले बिहारियों पर हुए हैं उनमे कभी भी मैंने किसी कांग्रेस के नेता को आगे आ कर बोलते हुए नहीं सुना है. जबकि महाराष्ट्र में इन्ही की सरकार है अगर चाहें तो ऐसे गुंडों को सबक सिखाने में इन्हें ज़रा भी वक्त नहीं लगेगा पर नहीं बोलेंगे क्यूंकि यहाँ चुनाव नजदीक है.
वैसे कई प्रदेशों का भगोड़ा ठाकरे कुनबा जिसके मराठी होने का सबूत अभी तक किसी इतिहासकार को मिला ही नहीं है. कोई कहता है ये बिहार से आया है, कोई यू.पी. कहता है तो कोई एम.पी. अलग अलग अध्ययन से यही पता चला है कि महाराष्ट्र के पहले इनका अंतिम आश्रय स्थल मध्य प्रदेश का देवास जिला था और वहाँ से रोजगार की खोज में महाराष्ट्र आये थे. साथ ही यहाँ मैं एक और बात बताना चाहूँगा कि “ठाकरे” इनका टाइटल है ही नहीं. बाल ठाकरे के दादा उस वक्त के एक ब्रिटिश लेखक विलियम मेकपिस ठाकरे से बहुत प्रभावित थे और उसी का अंतिम नाम अपने बेटे केशव सीताराम ठाकरे उर्फ प्रबोंधंकर ठाकरे को दिया. मतलब साफ़ है कि ठाकरे कुनबा का यह नाम भी एक दो पीढ़ी ही पुराना है. अब यहाँ सवाल ये उठता है कि क्या बाल ठाकरे के दादा सीताराम सच में उस ब्रिटिश लेखक से प्रभावित हो कर अपने बेटे को एक नया टाइटल दिए या फिर पुरानी यादों को मिटा कर बच्चों की नयी जिंदगी, एक नए तरीके से, एक नए प्रदेश में शुरू करवाना चाह रहे थे जिसका फायदा आज ठाकरे कुनबा उठा रहा है. मराठी प्रेम तो इस तरह इनके अंदर भरा हुआ है कि हर चीज़ ये मराठी में ही करवाने की बात करते हैं. शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव् ठाकरे हमेशा मराठी बोलने और मराठी स्कूलों में पढ़ने पर जोर देता है पर इससे उसे खुद को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका बेटा कहाँ पढ़ रहा है. जी हाँ, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि उद्धव ठाकरे का बेटा आदित्य ठाकरे जो अभी युवा शिवसेना के अध्यक्ष हैं वो मुंबई के महंगे और बड़े स्कूलों में से एक स्कूल में पढते थे. ये स्कूल था “बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल” जहाँ सभी बड़ी बड़ी बॉलीवुड की हस्तियाँ पढ़ा करती थीं और आज वहाँ उनके बच्चे पढ़ रहे हैं. अब आप ही देखिए ये है मराठी भाषा का नारा बुलंद करने वाला नेता. मेरा मानना है कि अगर आप मराठी स्कूलों की इतनी वकालत करते हो तो अपने बच्चों को वहाँ क्यूँ नहीं भेजते?
भारत की आर्थिक राजधानी कही जाती है मुंबई. इसका मतलब साफ़ है कि यह मुंबई सभी भारतीयों का उतना ही है जितना मराठियों का. मुंबई इस ठाकरे की कोई बपौती नहीं है जो कि जब चाहे बिहारियों के खिलाफ फतवा ज़ारी कर दे. पूरे देश में मुंबई का नाम फिल्म उद्योग के कारण ही है और इस ठाकरे को मैं ये भी याद दिला दूं कि इस उद्योग में उत्तर भारतियों का ही सिक्का चलता है. यहाँ मैं सभी तो नहीं कहूँगा पर हाँ अधिकतम बड़े निर्माता निर्देशक उत्तर भारतीय ही हैं. अगर हम आंकड़ों पर गौर करें तो मुंबई में सिर्फ भोजपुरी फिल्म का व्यवसाय २०० से ३०० करोड का है. अब आप ज़रा सोचिये कि ये सिर्फ मुंबई में भोजपुरी फिल्म के व्यवसाय का आंकड़ा है और ये बिहारियों के खिलाफ ज़हर उगलते हैं. ये तो वही बात हो गयी कि “जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया.” मतलब साफ़ है कि यहाँ आ कर हम आपको रोटी दे रहे हैं और आप हमें ही आँखें दिखा रहे हो. कोई बात नहीं कहा ही जाता है कि “अपने इलाके में कुत्ता भी शेर बनता है” जितना भौकना हो भौंक लो क्यूंकि हाथी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पर बस डर एक ही बात का है कि जिस तरह से गुंडागर्दी ये वहाँ मचा रहे हैं कही फिर कोई राहुल राज ना पैदा हो जाए.

व्यथा मेरे मन की
जवाब देंहटाएंयह व्यथा है भारतीय संविधान की.
ठाकरे परिवार शुरू से ही सनकी
मर्यादा भंग कर दी है लोकतंत्र की.
खुल गया राहुल गाँधी के मन की
भविष्य में सेहत ख़राब होगी कांग्रेस की.