पांच साल पहले नवम्बर 2005 में अप्रत्याशित जीत के साथ नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिए. एक लम्बे अंतराल के बाद इतना बड़ा परिवर्तन यहाँ हुआ था. इस परिवर्तन के कई कारण माने जाते हैं, जैसे लालू प्रसाद के जंगलराज और कुशासन से लोग त्रस्त हो चुके थे. साथ ही फ़रवरी 2005 में त्रिशंकु लोकसभा के बाद बिहार में छह महीने का राष्ट्रपति शासन ने लोगों को प्रशासन में नयी व्यवस्था के लिए आकर्षित किया. लेकिन साथ ही "नीतीश कुमार, नया बिहार" का नारा देकर ब्रांड नीतीश को बिहार के सुख और समृद्धि के पासपोर्ट के तौर पर वोट रुपी बाज़ार में उतारा. इन्होने पांच साल तक मीडिया का भरपूर उपयोग करते हुए अपनी पूरी मीडिया मार्केटिंग की और दुबारा 2010 में भी अपनी धमाकेदार वापसी की.
लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या सचमुच बिहार की तरक्की हुई है, क्या जंगलराज से मुक्ति मिल गयी है और बिहार भ्रष्टाचारमुक्त हो चूका है? जब इसका जवाब आप ढूँढने निकलेंगे तो सौ मुंह और सौ बातें होंगी. पर चलिए आज हम सच्चाई से ज़रा रूबरू हो जाएँ. अगर हम CAG (Comptroller and Auditor General) की 2008-2009 की रिपोर्ट देखेंगे तो पाते हैं कि बिहार में 11000 करोड़ का बिल प्रस्तुतिकरण या निधियों के दुरूपयोग का राजकोष घोटाला हुआ. ये घोटाला पशुपालन के 1000 करोड़ से कितना गुना ज्यादा है इसका अंदाज़ा आप खुद लगा सकते हैं. इसी वर्ष के CAG रिपोर्ट में एक और बहुत बड़ा और चौकाने वाला मामला सामने आया था. वर्ष 2007 के अगस्त से अक्टूबर के दौरान बिहार के कोसी बाढ़ पीड़ितों को भेजा जाने वाला करीब 3000 क्विंटल से ज्यादा के अनाज वितरण में ज़बरदस्त अनियमितता देखने को मिला है. बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम खगड़िया के अंतर्गत मानसी रेलवे स्टेशन से 32 ट्रकों से अनाज उठा कर नियत स्थान पर पहुँचाया गया. लेकिन जांच के बाद जब उन ट्रक के पंजीकृत नंबरों को खंगाला गया तो पाया गया कि अधिकतम नम्बर मोटरसाईकिल, ट्रैक्टर, स्कूटर, जीप और मिनी ट्रक के निकले. अब तो ऐसा लगता है कि ये अनाज ज़रुरतमंदों तक पहुँच भी पाया कि नहीं?
घोटालों की फेहरिस्त को आगे बढाते हुए अब हम चलते हैं स्वास्थ्य सेवा की ओर. CAG के रिपोर्ट में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना में धोखाधड़ी कर धन निकासी का मामला प्रकाश में आया है. जननी सुरक्षा योजना के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को हर जन्म पर 1400 रुपये सहायता राशि स्वरुप मिलती है और CAG के रिपोर्ट के अनुसार पांच जिलों के 14 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (किशनगंज, भागलपुर, नालंदा, गोपालगंज और पूर्वी चंपारण) के लिए छह लाख साठ हज़ार रुपये निकाले गए हैं. साथ ही रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि इन पैसों में 298 महिलाएं लाभान्वित हुई हैं और दो से पांच बच्चों को महज दो महीने में जन्म देकर इस राशि से इन महिलाओं को नगद लाभ हुआ है. अब आप ही सोच सकते हैं कि भ्रष्टाचार किस चरमसीमा तक पहुँच चुकी है. ये तो सिर्फ 14 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों रिपोर्ट है. ज़रा आप ही अब अंदाजा लगायें कि अगर पूरी 534 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के बारे में रिपोर्ट आ गयी तो ये धन निकासी का आंकड़ा क्या होगा?
खैर ये तो बात थी आंकड़ों कि लेकिन जब आप आंकड़ों से हट कर बात करेंगे तो पता चलेगा घोटालों और भ्रष्टाचार कि हालत बिहार में किस चरमसीमा तक पहुँच चुकी है. बिहार के हर एक प्रखंड में एक पद है CDPO (child development project officer) का. जिसके अन्दर करीब 200-300 आंगनबाड़ी आते हैं. यहाँ कहा जाता है कि एक CDPO कि सरकारी वेतन चाहे जो भी हो लेकिन उन्हें हर आँगनबाड़ी से गैर सरकारी वेतन अर्थात अतिरिक्त आमदनी 1100 रुपये कि होती है. तो आप ज़रा अंदाजा लगायें कि अगर 200-300 आंगनबाड़ी से इतनी ही रकम अगर हर महीने मिले तो इनकी आमदनी प्रतिमाह लाखों में हो रही है. ये सिर्फ मैं नहीं, आँगनबाड़ी में कार्यरत हर कोई जानता और कहता है. अब यहाँ देखने कि बात ये है कि ये पैसा सिर्फ प्रखंड के CDPO के पास ही रहता है या इसे ऊपर तक कई हिस्सों में बांटा जाता है. अब ज़रा हम बिहार के स्कूलों का रूख करेंगे तो यहाँ भी भ्रष्टाचार कम नहीं है. यहाँ हर स्कूल को "मिड डे मील" के नाम पर कई क्विंटल अनाज दिया जाता है. लेकिन अगर आप स्कूल में विद्यार्थियों की उपस्थिति देखने जायेंगे तो पता चलेगा कि करीब 300विद्यार्थियों में से 50-60 ही स्कूल में उपस्थित हैं. लेकिन आप स्कूल का उपस्थिति रजिस्टर चेक करेंगे तो पायेंगे को कम से कम 90 से 95 प्रतिशत विद्यार्थी उपस्थित हैं. अब सवाल ये उठता है कि ये सिर्फ कागज़ी उपस्थिति क्यूँ? असल में ऐसा इसलिए है कि ज्यादा उपस्थिति दर्ज कराने के बाद बचा हुआ "मिड डे मील" का अनाज बाज़ार में बेच दिया जाता है. ये सिर्फ सरकार ही नहीं देख पा रही है जबकि गाँव का हर व्यक्ति खुलेआम ये कहानी आपको सुना और दिखा सकता है. अब इतना बड़ा घोटाला हो रहा है तो क्या बड़े अफसरों को इसकी जानकारी नहीं है? वैसे जानकारी है भी तो वो कुछ नहीं करेंगे क्यूंकि उनका हिस्सा जो उनके पास पहुँच जाता है.
चलिए अब हम अपना रूख बिहार के कुछ सत्ताधारी विधायकों कि तरफ करते हैं और उनकी संपत्तियों कि वृद्धि दर के बारे में पता करते हैं. इससे आपको पता चलेगा कि जनता कैसे हलाल हो रही है और हमारे विधायक इस सुशासन राज में कैसे मालामाल हो रहे हैं. इनकी संपत्ति की वृद्धि दर देख कर आप भी चौंक जायेंगे.
NDA MLA
विधायक विधानसभा 2005 2010
वृषण पटेल वैशाली 11.27(लाख) 1.72(करोड़)
दामोदर सिंह महाराजगंज 2.90(लाख) 57.36(लाख)
गुड्डी देवी सैदपुर 3.11(लाख) 68.46(लाख)
मनोज कु.सिंह कुढ़नी 23हज़ार 40.90(लाख)
अनंत कुमार मुंगेर 13.91 लाख 59.12 लाख
अनिल कुमार विक्रम 31.47 लाख 1.27 करोड़
अनिरूद्ध कुमार निर्मली 25.14 लाख 1.11 करोड़
अमरेंद्र प्रताप सिंह आरा 10.9 लाख 32.58 लाख
अशोक कुमार यादव केवटी 14.27 लाख 51.48 लाख
नीतीश कुमार मिश्रा झंझारपुर 37.39लाख 1.32 करोड़
पूर्णिमा यादव नवादा 34.92 लाख 2.78 करोड़
रेणु देवी प. चंपारण 41.31 लाख 2.11 करोड़
एसएन आर्या राजगीर 24.78 लाख 1,6 करोड़ (सौजन्य- महुआ न्यूज़)
ऊपर के आंकड़ों को देख कर आप तो अंदाजा लगा ही चुके होंगे कि सुशासन कुमार के ऑफिसर और विधायकगण पूरी इमानदारी के साथ जनसेवा में लगे हुए हैं. नीतीश कुमार जी की इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम में उनका बढ़ चढ़ कर साथ दे रहे हैं, इससे आपको अब अंदाजा हो गया होगा कि सुशासन के इस थोथेबाजी में भ्रष्टाचार किस तरह से हावी है. मेरा बस मुख्यमंत्री जी से अनुरोध है कि मीडिया मैनेजिंग छोड़ के कुछ बिहार मैनजेमेंट के बारे में सोचे और सिर्फ मीडिया में ही नहीं असल में भी बिहार को सर्वश्रेष्ट राज्य बनाने के लिए कदम उठायें.
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