बुधवार, 13 दिसंबर 2017

कैसी ये चीत्कार है...

गोरखपुर हादसा 

कैसी चीत्कार है, ये कैसा हाहाकार है
मृत हुए मासूम, निष्ठुर ये सरकार है.
मां की ये गोद है, गोद मे अबोध है
मृत पड़ा है ये, माँ को नही ये बोध है.
लाशों का व्यापार है, कौन गुनाहगार है 
कैसी चीत्कार है, ये कैसा हाहाकार है.

गोद ये पिता की आज अर्थी बन गयी
माँ के कलेजे को ये टुकड़े टुकड़े कर गयी.
सीले हुए ये लब हैं, हाथों में शव है
पंक्तियों में सब है, संस्कार कब है.
मृत हुए मासूम, निष्क्रिय सरकार है
कैसी चीत्कार है ये कैसा हाहाकार है.


सोमवार, 26 जून 2017

खो गया मेरा वो हिंदुस्तान


कहाँ खो गया मेरा वो हिन्दुस्तान
संग थे जहां ॐ और अज़ान
धर्म  से बड़ा था जहां ईमान
कहाँ खो गया मेरा वो हिन्दुस्तान...

दिवाली, ईद दोनो थी हमारी शान
जहां संग रहते थे राम और रहमान
जब सिर्फ भाईचारा थी हमारी शान
कहाँ खो गया मेरा वो हिन्दुस्तान...

माँस की लड़ाई में बंटे हिन्दू मुसलमान
न जाने दिल में क्या पल रहे अरमान
इन्सानों को बंटते देख रो रहा आसमान
कहाँ खो गया मेरा वो हिन्दुस्तान...

चाँद से भी न कुछ सीख सका ये इंसान
शीतल ही है, करवाचौथ हो या रमज़ान
खो के इंसानियत ये बने हिन्दू मुसलमान
कहाँ खो गया मेरा वो हिन्दुस्तान...