आज पता नहीं क्यूँ मुझे अपने देश की राजधानी का ख्याल मेरे मन में आया. असल में समाचार पत्रों में कुछ दिनों से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार से सम्बंधित ख़बरें आ रही थीं. मैं आपको ज़रा याद दिलाना चाहता हूँ ये दिल्ली, उसी देश की राजधानी है जिसे हम माता कह के खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. बड़े शान से हम कहते हैं की "भारत हमारी माता है". आज हमारे देश के लिए एक और गौरव की बात ये है की हमारी भारत माता की 'राष्ट्रपति' वो भी महिला हैं. साथ ही हमारे देश के सरकार की बागडोर भी एक सशक्त महिला ने ही थाम रखी है और इस देश की राजधानी है, हमारी प्यारी दिल्ली. अब एक और संयोग देखिये कि दिल्ली प्रदेश कि जो मुखिया हैं वो भी 'महिला' ही हैं और तो और दिल्ली शहर की मेयर भी एक महिला ही हैं. क्या अजब संयोग है. मेरे विचार में शायद संसार का कोई भी देश ऐसा नहीं होगा जहाँ महिलाओं का इतना सम्मान होता हो और जहाँ लगातार उच्च पदस्थ सिर्फ महिलाएं ही हों. लेकिन इन सबों का वास दिल्ली में होते हुए भी, दिल्ली में महिलाओं की स्थिति क्या है?
आंकडें कहते हैं कि इस देश का महिलाओं के लिए दिल्ली सबसे असुरक्षित शहर है. हाल ही में नेशनल क्राइम ब्यूरो का सर्वे कहता है कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार में दिल्ली का पहला स्थान है. मुझे तो सोच कर लगता है कि 'वाह रे देश कि विडम्बना' महिलाओं के देश में, महिलाओं के राज्य में और महिलाओं के शहर में 'बेचारी महिला' ही असुरक्षित हैं. शायद ये राजनीति के गिरते स्तर की पहचान है. अगर हम सामान्य अपराध में सर्वे रिपोर्ट देखेंगे तो दिल्ली इसमें पहले पांच शहरों में शान से खड़ा है पर महिला अत्याचार में सबसे अव्वल है.
अब ज़रा हम अगर आंकड़ों पर गौर करें तो हमें पता चलेगा की असल में हमारी दिल्ली क्या है. कुछ दिनों पहले किये गए 35 बड़े शहरों में महिला अपराध के मामले में दिल्ली सबसे आगे है. अगर 35 शहरों को मिला कर महिला अत्याचार 14.2% है प्रतिलाख कि आबादी में तो, दिल्ली में ये प्रतिशत 27.6% प्रतिलाख में है. इसका मतलब साफ़ है की बांकी 35 शहरों के संयुक्त प्रतिशत का दोगुना. ये सर्वे उन 35 बड़े शहरों में किया गया है जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है. अगर बलात्कार के केसों को देखें तो आपको पता चलेगा कि, अकेले दिल्ली में 562 केस हैं जबकि 1693 सभी शहरों को मिला कर. मतलब करीब एक तिहाई केस दिल्ली में ही हुए हैं. महिलाओं के अपहरण के 2409 केसों में 900 केस दिल्ली में हुए हैं, जो की सम्पूर्ण आंकड़ों का 37.4% अकेला दिल्ली में है. दहेज़ हत्या का मामला अगर देखें तो 19% दिल्ली में हुए है बांकी 35 शहरों के मुकाबले. उपर्युक्त सभी आंकड़े भारत के सिर्फ 35 बड़े शहरों में संयुक्त रूप से किया गया है जिनकी आबादी 10 लाख से ऊपर थी.
अगर मैं इस तरह से आंकडें और केसों को विस्तार से आपको बताना शुरू कर दूंगा तो शायद मैं लिखता रहूँगा पर मेरे शब्द ख़त्म नहीं होंगे. इसलिए आंकड़ों को यही विराम देते हुए बस मैं ये कहना चाहता हूँ कि, कब ये स्वार्थी राजनेता अब तो राजनेत्री भी कहना अनुचित नहीं होगा. क्यूंकि उच्च पद पर विराजमान तो है ही और राजनीति में भी बड़ी संख्या में आ रही हैं. पर ये लोग कब स्वार्थ से ऊपर उठ कर काम करना शुरू करेंगे. मैं इन सभी महिला प्रशासकों से पूछना चाहता हूँ कि क्यूँ आप सबों के उच्च पद पर विराजमान रहने पर भी आज कोई भी महिलाएं बाहर निकलने से डरती है, क्यूँ दिन ब दिन इनके ऊपर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं, सरकार क्यूँ नहीं इन बातों के ऊपर ठोस कदम उठाती है? सवाल बहुत हैं पर जवाब इनके पास नहीं है. क्यूंकि ये भी सिर्फ राजनीति ही जानते हैं.
अभी संसद में हाल ही में बवाल हुआ था, महिला आरक्षण पर. मैं यहाँ यही पूछना चाहता हूँ किन आरक्षण कि बात कर रही हैं ये महिला राजनेत्रियाँ या फिर ये सरकार? मेरे हिसाब से महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार में तो आरक्षण दिलवा दिया इन महिला प्रशासकों ने और इनके कुशासन ने दिल्ली को बनवा दिया देश का सबसे असुरक्षित शहर महिलाओं के लिए. सबसे पहले तो महिलाओं का हितेषी बनने का ढोंग छोड़ दें जो 'महिला आरक्षण' दिखा कर, कर रहे हैं. अगर इन उच्च पदस्थ महिलाओं को ज़रा भी महिलाओं के प्रति दर्द इनके दिल में है तो दिल्ली को ही नहीं पूरे भारतवर्ष को महिलाओं पर हो रहे अत्याचार से मुक्त करें.
मेरा निवेदन है इन सबों से एक बार फिर कि, गन्दी राजनीति से ऊपर उठ कर इन आम जनता के बारे में सोच लें. अगर सच में आपको महिलाओं को आगे लाना है, उन्हें मुख्य धारा में सरीक करना है और इन्हें सशक्त बनाना है तो इन्हें पूर्ण सुरक्षा का अहसास दिलाएं. फिर मेरे विचार में इन्हें किसी आरक्षण कि ज़रूरत नहीं पड़ेगी. पूर्ण सुरक्षा का अहसास ही इनके लिए सबसे बड़ा आरक्षण होगा और पुनः हम गौरवान्वित होकर कह सकेंगे कि "भारत हमारी माता है"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें