शनिवार, 10 अप्रैल 2010

महिला अपराधों की राजधानी "दिल्ली"

आज पता नहीं क्यूँ मुझे अपने देश की राजधानी का ख्याल मेरे मन में आया. असल में समाचार पत्रों में कुछ दिनों से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार से सम्बंधित ख़बरें आ रही थीं. मैं आपको ज़रा याद दिलाना चाहता हूँ ये दिल्ली, उसी देश की राजधानी है जिसे हम माता कह के खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. बड़े शान से हम कहते हैं की "भारत हमारी माता है". आज हमारे देश के लिए एक और गौरव की बात ये है की हमारी भारत माता की 'राष्ट्रपति' वो भी महिला हैं. साथ ही हमारे देश के सरकार की बागडोर भी एक सशक्त महिला ने ही थाम रखी है और इस देश की राजधानी है, हमारी प्यारी दिल्ली. अब एक और संयोग देखिये कि दिल्ली प्रदेश कि जो मुखिया हैं वो भी 'महिला' ही हैं और तो और दिल्ली शहर की मेयर भी एक महिला ही हैं. क्या अजब संयोग है. मेरे विचार में शायद संसार का कोई भी देश ऐसा नहीं होगा जहाँ महिलाओं का इतना सम्मान होता हो और जहाँ लगातार उच्च पदस्थ सिर्फ महिलाएं ही हों. लेकिन इन सबों का वास दिल्ली में होते हुए भी, दिल्ली में महिलाओं की स्थिति क्या है?

आंकडें कहते हैं कि इस देश का महिलाओं के लिए दिल्ली सबसे असुरक्षित शहर है. हाल ही में नेशनल क्राइम ब्यूरो का सर्वे कहता है कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार में दिल्ली का पहला स्थान है. मुझे तो सोच कर लगता है कि 'वाह रे देश कि विडम्बना' महिलाओं के देश में, महिलाओं के राज्य में और महिलाओं के शहर में 'बेचारी महिला' ही असुरक्षित हैं. शायद ये राजनीति के गिरते स्तर की पहचान है. अगर हम सामान्य अपराध में सर्वे रिपोर्ट देखेंगे तो दिल्ली इसमें पहले पांच शहरों में शान से खड़ा है पर महिला अत्याचार में सबसे अव्वल है.

अब ज़रा हम अगर आंकड़ों पर गौर करें तो हमें पता चलेगा की असल में हमारी दिल्ली क्या है. कुछ दिनों पहले किये गए 35 बड़े शहरों में महिला अपराध के मामले में दिल्ली सबसे आगे है. अगर 35 शहरों को मिला कर महिला अत्याचार 14.2% है प्रतिलाख कि आबादी में तो, दिल्ली में ये प्रतिशत 27.6% प्रतिलाख में है. इसका मतलब साफ़ है की बांकी 35 शहरों के संयुक्त प्रतिशत का दोगुना. ये सर्वे उन 35 बड़े शहरों में किया गया है जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है. अगर बलात्कार के केसों को देखें तो आपको पता चलेगा कि, अकेले दिल्ली में 562 केस हैं जबकि 1693 सभी शहरों को मिला कर. मतलब करीब एक तिहाई केस दिल्ली में ही हुए हैं. महिलाओं के अपहरण के 2409 केसों में 900 केस दिल्ली में हुए हैं, जो की सम्पूर्ण आंकड़ों का 37.4% अकेला दिल्ली में है. दहेज़ हत्या का मामला अगर देखें तो 19% दिल्ली में हुए है बांकी 35 शहरों के मुकाबले. उपर्युक्त सभी आंकड़े भारत के सिर्फ 35 बड़े शहरों में संयुक्त रूप से किया गया है जिनकी आबादी 10 लाख से ऊपर थी.

अगर मैं इस तरह से आंकडें और केसों को विस्तार से आपको बताना शुरू कर दूंगा तो शायद मैं लिखता रहूँगा पर मेरे शब्द ख़त्म नहीं होंगे. इसलिए आंकड़ों को यही विराम देते हुए बस मैं ये कहना चाहता हूँ कि, कब ये स्वार्थी राजनेता अब तो राजनेत्री भी कहना अनुचित नहीं होगा. क्यूंकि उच्च पद पर विराजमान तो है ही और राजनीति में भी बड़ी संख्या में आ रही हैं. पर ये लोग कब स्वार्थ से ऊपर उठ कर काम करना शुरू करेंगे. मैं इन सभी महिला प्रशासकों से पूछना चाहता हूँ कि क्यूँ आप सबों के उच्च पद पर विराजमान रहने पर भी आज कोई भी महिलाएं बाहर निकलने से डरती है, क्यूँ दिन ब दिन इनके ऊपर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं, सरकार क्यूँ नहीं इन बातों के ऊपर ठोस कदम उठाती है? सवाल बहुत हैं पर जवाब इनके पास नहीं है. क्यूंकि ये भी सिर्फ राजनीति ही जानते हैं.

अभी संसद में हाल ही में बवाल हुआ था, महिला आरक्षण पर. मैं यहाँ यही पूछना चाहता हूँ किन आरक्षण कि बात कर रही हैं ये महिला राजनेत्रियाँ या फिर ये सरकार? मेरे हिसाब से महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार में तो आरक्षण दिलवा दिया इन महिला प्रशासकों ने और इनके कुशासन ने दिल्ली को बनवा दिया देश का सबसे असुरक्षित शहर महिलाओं के लिए. सबसे पहले तो महिलाओं का हितेषी बनने का ढोंग छोड़ दें जो 'महिला आरक्षण' दिखा कर, कर रहे हैं. अगर इन उच्च पदस्थ महिलाओं को ज़रा भी महिलाओं के प्रति दर्द इनके दिल में है तो दिल्ली को ही नहीं पूरे भारतवर्ष को महिलाओं पर हो रहे अत्याचार से मुक्त करें.

मेरा निवेदन है इन सबों से एक बार फिर कि, गन्दी राजनीति से ऊपर उठ कर इन आम जनता के बारे में सोच लें. अगर सच में आपको महिलाओं को आगे लाना है, उन्हें मुख्य धारा में सरीक करना है और इन्हें सशक्त बनाना है तो इन्हें पूर्ण सुरक्षा का अहसास दिलाएं. फिर मेरे विचार में इन्हें किसी आरक्षण कि ज़रूरत नहीं पड़ेगी. पूर्ण सुरक्षा का अहसास ही इनके लिए सबसे बड़ा आरक्षण होगा और पुनः हम गौरवान्वित होकर कह सकेंगे कि "भारत हमारी माता है"

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

इस्लाम और आतंकवाद

गत दिनों मैंने मास्को ब्लास्ट के बारे में देखा तो मेरे दिमाग में एक ही बात उस समय से आ रही है कि आखिर कब तक इस्लाम के नाम पर ये हत्याएं होती रहेंगी, क्या कोई धर्म ये बताता है कि जो इनके अनुयायी नहीं हैं उनकी हत्या कर दो. मेरा ज्ञान जहाँ तक कहता है कि, कोई भी धर्म ऐसी शिक्षा नहीं देता है और फिर भी इन्हें सही ठहराने वाले आपके आस-पास बहुत मिल जायेंगे. मेरे विचार से शायद जिस विवाद से सम्पूर्ण विश्व बचना चाह रहा है उस पर खुल कर बहस करने का सही वक्त आ गया है. ये मुद्दा अब समूचे संसार के सामने बहस का मुद्दा है "इस्लाम और आतंकवाद"

यह बिलकुल सही है कि "हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता है, पर हर एक पकड़ा जाने वाला आतंकवादी मुसलमान ही क्यूँ होता है" अगर हम कुछ एक उदाहरण को नज़रंदाज़ कर दें तो. दुनिया का हर देश इस्लाम आतंकवाद का दंस झेल रहा है. यह सवाल हर किसी के मन में हर वक्त आता है पर आज तक इसपर खुल के बहस करने से हर कोई कतराता हैं. अब शायद समय आ गया है की इस पर हम खुल के बात करें. क्यूंकि ये बहुत ही पुरानी कहावत है की 'करे कोई और भरे कोई'. इसलिए ये आतंकवादी संगठन इस्लाम के नाम पर दरिंदगी तो कर देते हैं हैं, पर इसका भुगतान हमारे निर्दोष मुसलमान भाइयों को भुगतना पड़ता है. अल-कायदा जिस ट्विन टावर को उड़ा कर 9/11 का जश्न मना रही थी, क्या उसके बाद उन्होंने देखा की वहां पर अमरीकी पुलिस ने कितने निर्दोष मुसलमानों को सलाखों के पीछे कर दिया. हज़ारों-हज़ार की संख्यां में निर्दोषों की गिरफ्तारियां हुई थी. कुछ तो रिहा होने के बाद भी अब तक अपनी सामान्य ज़िन्दगी नहीं जी पा रहे हैं. क्या यही ट्विन टावर उड़ने की उपलब्धी गिनाती है ये अल कायदा. इन्हें इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. आज इन लोगों ने आम मुसलमानों की ये हालत बना दी है की अगर आपका नाम अहमद, आरिफ, खान, अली या ऐसा कुछ भी है तो आपको शक की निगाह से देखा जाता है. अगर आप भारत से बाहर किसी अंग्रेजी देश की यात्रा पर हैं तो हवाई अड्डे पर जाँच दल सामान्य से ज्यादा आपकी तलाशी लेंगे. इसका सबसे बड़ा उदहारण हाल ही में शाहरुख़ खान की शिकागो हवाई अड्डे पर हुई घटना से लगा सकते हैं. जहाँ जाँच दल अधिकारी ने उन्हें घंटों बिठा कर रखा था.

वैसे सच्चाई ये भी है की लादेन जैसे आतंकवादियों को सही मानने वालों की कमी भी इस संसार में नहीं है. शायद आप सब भी मेरे इस बात से सहमत ही होंगे. क्यूंकि अगर इन्हें मानने वालों की कमी होती तो इनकी तायदाद दिन ब दिन बढती नहीं जाती. इनके लिए हर कोई फिदायीन या मानव बम बनने को तैयार नहीं रहता. अभी मास्को ब्लास्ट में भी मानव बम का ही इस्तमाल किया गया था. लेकिन मैं इस्लाम की लड़ाई लड़ने वाले आतंकवादियों से पूछना चाहता हूँ की जहाँ आप ब्लास्ट करते हैं वहां क्या कोई मुसलमान नहीं मारा जाता? शायद आपको अब तक याद होगा कि गत वर्ष पकिस्तान के एक फाईव स्टार होटल में जबरदस्त ब्लास्ट हुआ था, वो भी रमजान के पाक महीने में. सभी इफ्तार की नमाज़ अदा कर रहे थे और एक जबरदस्त धमाका हुआ था. मैं इन लोगों से पूछना चाहता हूँ, की यहाँ ये ये ब्लास्ट क्यूँ हुआ था. यहाँ तो सभी खुदा की इबादत कर रहे थे, जिस खुदा के लिए आप लड़ाई लड़ रहे हैं, ये निर्दोष तो उन्हें ही याद कर रहे थे. फिर क्यूँ यहाँ ब्लास्ट किया आपने? अगर आप मुसलामानों का खुद को बहुत बड़ा हितेषी मानते हैं तो अजमेर शरीफ और जामा मस्जिद में क्यूँ ब्लास्ट किया था? ज़रा इसका जवाब देंगे आप की वहां कौन मारा गया था, वही हमारे निर्दोष मुसल्मान भाई.

मेरे विचार में यहाँ पर आप लोगों के सामने तस्वीर पूरी तरह से साफ़ है की आतंकवादियों का कोई कौम या कोई धर्म नहीं होता. इनका एक अलग ही धर्म है आतंकवाद. दुनिया में आतंकवादी जहाँ भी हैं वो किसी इस्लाम, सिख या हिन्दू धर्म से सम्बन्ध नहीं रखते हैं. उनका अलग ही धर्म है जिसका नाम है 'आतंकवाद" और उनकी पवित्र किताब बम है. वही बम जो किसी की जाती या धर्म देख कर नहीं फटती. यहाँ मैं राजनेताओं को भी कहना चाहूँगा की धर्म की राजनीती में अपना वोट भुनाना थोडा कम करे दें साथ ही शाहरुख़ खान जैसी बड़ी हस्ती से कहना चाहूँगा की आप लोग तो राजनेता से भी अच्छी राजनीति कर लेते हैं. अपनी फिल्म को चलाने का क्या शानदार शगूफा पाकिस्तानी खिलाडियों के रूप में छोड़ा और आपकी फिल्म 'माई नेम इज खान' बन गयी, अब तक सबसे ज्यादा चलने वाली फिल्म. उसके बाद वापस मुंबई आने के बाद तो आप ऐसे शांत हो गए जैसे "गधे के सर से सींग गाएब हो गया हो". वैसे जनता तो बेवकूफ है, इन्हें पता ही नहीं चला की आप तो अपनी फिल्म की मार्केटिंग कर रहे हैं और जनताओं की भावनाओं से खेल रहे हैं. पाकिस्तानी क्रिकेटर के विवाद में तो आपने अपनी फिल्म चलाने के लिए जम के बयानबाजी कि, खुद को शिकागो में रोके जाने पर भी अच्छा ख़ासा मीडिया में हंगामा किया था. पर आप जैसे बड़े स्टार अगर कभी लादेन के खिलाफ मीडिया के सामने ऐसा बयान दे देंगे तो शायद इसका आम जनता में व्यापक असर पड़ेगा. प्रेस कांफ्रेंस बुला कर अगर आप जैसे स्टार सीधा लादेन को अपनी बात कहें की "ये देखो तुम्हारे कारण हमें क्या-क्या झेलना पड़ रहा है" मुझे पता है ये बड़ी बचकानी से बात मैं कह रहा हूँ लेकिन सरकार को दोष देने के बजाय हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है. मुझे पता है इन बातों से तो लादेन जैसे लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर अगर सब मिल कर हर बार ये बोलना शुरू कर देंगे तो शायद कुछ फर्क पड़े. कम से कम लादेन को नहीं पर उनको सही मानने वालों की संख्यां भी तो कम होगी. जब गाँधी जी निहत्थे अंग्रेजों से भारत को आज़ाद करने की बात करते थे तो लोग ऐसे ही उन्हें कहते थे की ये असंभव है, पर आखिर ये संभव कर दिखाया न उन्होंने. इसलिए अंततः मेरा इन सारे सितारों से अनुरोध है की ये कदम आप उठायें. ये ज़रूरी नहीं है की सिर्फ फ़िल्मी हस्ती ही आगे आयें. वो सभी मुसलमान भाई जो आज विश्व के सामने एक प्रसिद्धि हासिल किये हुए हैं, चाहे वो किसी भी क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हों, सब आगे बढ़ें और एक एक करके अपनी बात इन आतंकवादी संगठनों तक पहुचाएं. फिर शायद वो दिन भी दूर नहीं होगा की कुछ तो बदलाव आयेगा. कम से कम निर्दोष मासूम तो इनके बहकावे में नहीं आयेंगे.