गत चुनाव के परिणाम ने साबित कर दिया है कि बिहार अब बदल रहा है. जो बिहार आजतक जात-पात के बूते पर चुनाव लड़ता था, पार्टियाँ अपना उम्मीदवार जातीय समीकरण के आधार पर तय करते थे, लेकिन परिणाम ने साफ़-साफ़ ये बता दिया कि अब बिहार बदल कर विहार(खूबसूरत जगह) बन रहा है. परन्तु, मैं यहाँ मीडिया वालो को भी ज़रा सा दोष देना चाहूँगा, क्यूंकि यही मीडिया कहती है, कि बिहार में जात-पात कि राजनीति होती है लेकिन जैसे ही राजनितिक पार्टियाँ अपना उम्मीदवार घोषित करती हैं तो अगले दिन समाचार पत्रों में उम्मीदवारों कि जातिवार सूची जारी कर देते हैं. इसमें हम किसे दोष देंगे, इन राजनेताओं को या फिर मीडिया को? इसबार वैसे भी बिहार में जात-पात से ऊपर उठ कर मतदान किया गया है, जिसका गवाह पूरा हिन्दुस्तान है. लेकिन मुझे तब बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक तरफ हम खुद को बदलने कि कोशिश कर रहे हैं वही दूसरी तरफ कई समाचार पत्रों ने जीते हुए विधायकों कि जातिवार सूची तक ज़ारी कर दी. खैर, बस अब हमें इस बात की ख़ुशी है कि हम अब बदल रहे हैं. पर इस अप्रत्याशित जीत के बाद नीतिश कुमार कि जिम्मेदारियां भी बहुत बढ़ गयी है. बिकास तो चारो तरफ दिख रहा है पर मेरे विचार में सम्पूर्ण विकसित करने में सबसे बड़ा योगदान बैंकों का होता है. लेकिन सर्वे के अनुसार बिहार में ऋण देने में बैंक सबसे पिछड़ी हुई है.
अगर हम रिपोर्ट देखें तो पाएंगे कि पूरे बिहार के बैंकों में बिहारवासियों ने करीब 101761 करोड़ रुपये जमा करवाया है लेकिन ऋण के नाम पर इन्हें करीब 31921 करोड़ ही मिले हैं. यहाँ मतलब बिलकुल साफ़ है कि, माहौल बदल रहा है, हालात एवं क़ानून व्यवस्था में सुधार हो रहा है पर बैंक के क्रिया-कलाप मे कोई सुधार नही दिख रहा है. हमने अपने प्रदेश के बैंक मे 101761 करोड़ रुपये जमा किया है पर ऋण के रूप मे हमे केवल 31921 करोड़ मिले हैं बांकी के करीब 70000 करोड़ रुपये यू ही या तो बैंक मे पड़े हुए हैं या ये बाहर के प्रदेशों मे जा रहे हैं. बिहार सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है की यहाँ के बैंक की साख जमा अनुपात अर्थात ऋण देने की दर मे बढ़ोतरी करना. अगर हम बिहार की तुलना अन्य प्रदेशों से करें तो पता चलेगा की ऋण देने मे हम कितने पीछे हैं.
राज्य जमा(करोड़) क़र्ज़(करोड़) प्रतिशत(क़र्ज़ का)
तमिलनाडु 251532 282604 113
आंध्रप्रदेश 245686 269760 109
राजस्थान 123918 103295 87
कर्नाटक 283571 226879 80
महाराष्ट्र 1693706 1313775 78
गुजरात 210738 143015 68
मध्यप्रदेश 134274 81023 60
बिहार 101762 31921 31
(सर्वे रिपोर्ट, सौजन्य- दैनिक हिन्दुस्तान)
अगर उपर्युक्त आंकड़ों को देखें तो हमें पता चलता है कि बैंक वालों के रवैये के कारण हम कितने पिछड़े हुए हैं और इस हालात में हमें अपने निकटम प्रदेश के आस-पास भी पहुंचना मुश्किल सा प्रतीत हो जाता है. अगर हम आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि साख जमा अनुपात के मामले में बिहार देश के सभी छोटे और बड़े राज्यों से पिछड़ा हुआ है. इस मामले में महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक एवं गुजरात जैसे राज्य बिहार से दोगुने या उससे भी ज्यादा आगे हैं. मिजोरम ने 61 प्रतिशत, उड़ीसा ने 52 प्रतिशत, मणिपुर ने 50 प्रतिशत, सिक्किम ने 42 प्रतिशत और असम ने 40 प्रतिशत कि दर के साथ हमें पीछे छोड़ रखा है.
अब मेरा आग्रह बिहार के मुख्यमंत्री जी से है कि कृपया इन बातों पर ज़रा गौर फरमाएं जिससे बिहार में स्वरोजगार की संभावनाएं बढ़ेगी. जिस पलायन को रोकने के लिए सभी सरकारें सिर्फ कहने का प्रयास ही कर रही हैं, शायद वो हम रोक सकेंगे और जो समृद्ध बिहार केवल हमारी कल्पना में ही बसी हुई है उसे यकीन में बदल सकते हैं